काव्य खंड
साखियां (कबीर )
मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहि।
मुकताफल मुकता चुगै ,अब उड़ि अनत न जाहि।। 1
जिस प्रकार हंस जल से भरे सरोवर में क्रीडा करते हैं और मोती चुगने में इतने आनंदित हो जाते हैं कि वह उसी सरोवर में रहना चाहते हैं। उसी प्रकार व्यक्ति भी मन रूपी सरोवर मैं आनंदित होकर सांसारिक जीवन में खो जाता है।
प्रेमी ढूंढत मै फिरौ, प्रेमी मिले न कोइ ।
प्रेमी कौ प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।। 2
कबीर कहते हैं कि मैं ईश्वर रूपी सच्चे प्रेम को यहां वहां ढूंढता रहा पर वह कहीं नहीं मिला और जब ईश्वर रूपी सच्चा प्रेम मिलता है, तो बुराई भी अच्छाई में बदल जाती है। सच्चे प्रेम से अंधकार रूपी बुराई मिट जाती है।
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पाठय पुस्तक -क्षितिज (Class 9 Hindi)
पाठ 2 - ल्हासा की ओर
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पाठय पुस्तक -क्षितिज (Class 9 Hindi)
पाठ 2 - ल्हासा की ओर --------------------------------------
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।। 3
कबीर कहते हैं हमें ज्ञान रूपी हाथी के ऊपर चढ़कर सहज आसन में बैठकर ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए। यह संसार कुत्ते के समान तुम्हारे आगे बाधाएं उत्पन्न करेगा। तुम उसकी परवाह मत करो। वह एक दिन खुद ही मजबूर होकर चुप हो जाएगा।
पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान।। 4
कबीर कहते हैं यह संसार पक्ष - विपक्ष के कारण ईश्वर को भूल गया है, पर जो निरपक्ष होकर बिना भेदभाव के ईश्वर की भक्ति करता है, वही ज्ञानी सच्चा संत कहलाता है।
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पाठय पुस्तक - कृतिका
NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kritika
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हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहूँ के निकटि न जाइ।। 5
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहूँ के निकटि न जाइ।। 5
कबीर कहते हैं हिंदू राम राम कहते हैं और मुसलमान खुदा कहते हैं। पर जीवित वही व्यक्ति है जो इस भ्रम से दूर रह कर ईश्वर की भक्ति करता है।
काबा फिरि कासी भया, रामहि भया रहीम।
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम।। 6
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम।। 6
जिस तरह गेहूं को मोटा पीसने से आटा बन जाता है और उसे बारीक पीसने से मैदा बनता है। उसी तरह काबा जाओ, चाहे काशी जाओ, राम कहो या रहीम कहो, बात एक ही है। राम और रहीम दोनो एक ही ईश्वर है।
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Class 9 Subjects
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ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरा, साधु निंदा सोइ।। 7
ऊंचे कुल में जन्म लेने से मनुष्य के कर्म ऊंचे नहीं होते हैं। मनुष्य के कुल की पहचान उसके कर्मों से होती है। अच्छे कर्मों से अच्छे फल और बुरे कर्मों से वह निंदा का पात्र बन जाता है। ठीक उसी प्रकार जैसे सोने के बर्तन में शराब रख देने से वह अमृत नहीं बन जाता है वह शराब ही रहती है।
सबद (पद)
- 1 -
मोकों कहाँ ढूँढे बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग मे।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहो, पल भर की तलास में।
कहै कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में।।
- 1 -
मोकों कहाँ ढूँढे बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग मे।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहो, पल भर की तलास में।
कहै कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में।।
कबीर कहते हैं मनुष्य ईश्वर को जाने कहां-कहां नहीं ढूंढता है, पर ईश्वर तो तुम्हारे पास ही है। वह ना मंदिर में है, ना मस्जिद में है, ना काबे में है, ना कैलाश में है, ना ही किसी क्रिया कर्म और पूजा पाठ, योग में भी नहीं है । ईश्वर तो तुम्हारे भीतर ही है। तुम ईश्वर को अपने भीतर खोजते तो वह तुम्हें क्षणभर की तलाश में ही मिल जाते क्योंकि ईश्वर तुम्हारे हृदय में ही रहते हैं। वह सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है।
- 2 -
संतौ भाई आई ग्याँन की आधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँघी।।
हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी मोह बलिंडा तूटा।
त्रिसनाँ छानि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा।।
जोग-जुगति करि संतो बाँधी, निरचू चुवैं न पाँणी।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।।
आंधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भीनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ।।
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँघी।।
हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी मोह बलिंडा तूटा।
त्रिसनाँ छानि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा।।
जोग-जुगति करि संतो बाँधी, निरचू चुवैं न पाँणी।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।।
आंधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भीनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ।।
कबीर कहते हैं जब ज्ञान की आधी आती है तो मनुष्य के भ्रम का बांध टूट जाता है। माया रूपी बंधन भी खुल जाता है। हृदय के बुरे विकार दूर हो जाते हैं। मोह माया छूट जाती हैं और हमारी सारी इच्छाएँ सामाप्त हो जाती है, तब कुबुद्धि भी दूर भाग जाती है। संतो के साथ बैठने से अज्ञानता का पानी हमारे ऊपर नहीं गिरता है। छल कपट सब दूर हो जाता है। जब ईश्वर रूपी ज्ञान की प्राप्ति होती है तो ज्ञान रूपी आंधी आने से सब जगह ज्ञान का प्रकाश फैल जाता है और अज्ञानता रूपी अंधकार दूर हो जाता है।
प्रश्न अभ्यास - साखियां
प्रश्न 1- 'मानसरोवर' से कवि का क्या आशय है?
उत्तर - मानसरोवर से कवि का आशय मन से है। जो सांसारिक सुख सुविधाओं के बंधनों से बधा रहता है और उससे बाहर नहीं निकल पाता है।
प्रश्न 2 - कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
उत्तर -सच्चा प्रेम ऊंच-नीच, भेदभाव, द्वेष आदि अवगुणों से रहित होता है इसलिए बुराई भी अच्छाई के संपर्क में आने पर अच्छाई में बदल जाती है ।
प्रश्न 3 - तीसरे दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्व दिया है?
उत्तर - तीसरे दोहे में कवि ने संसारिक लोगों की परवाह न करके अपने भीतर ईश्वर प्राप्ति का रास्ता बताते हुए आत्मज्ञान को महत्व दिया है।
प्रश्न 4 - इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?
उत्तर - जो पक्ष - विपक्ष छल - कपट से दूर रहता है और निष्पक्ष होकर ईश्वर की भक्ति करता है। वही सच्चा संत कहलाता है।
प्रश्न 5 - अंतिम दो दोहों के माध्यम से कवि ने किस तरह की संकीर्णताओ की ओर संकेत किया है?
उत्तर -अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर जी ने ऊंच-नीच भेदभाव के कारण मनुष्य की अज्ञानता की संकीर्णता की ओर संकेत किया है।
प्रश्न 6 - किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर - किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कर्मों से होती है। उसके कुल से नहीं होती है। वह अच्छे कर्म करता है तो कुल का नाम रोशन करता है और बुरे कर्म करने पर उसके कुल और उसकी निंदा होती है। जिस तरह अब्दुल कलाम जी ने साधारण परिवार में जन्म लेने के बावजूद वह अपने कर्मों से एक सितारा बनकर चमके। जिन्हें संसार एक वैज्ञानिक, राष्ट्रपति, शिक्षक, और कवि के रूप में जानते हैं।
प्रश्न 7- काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए -
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।। 3
उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियों में कबीर जी ने ज्ञान की महिमा बताई है। उनकी भाषा सरल और सहज होने से उनकी काव्य भाषा का रूप भी सरलता से निकलकर आता है। इस पंक्तियों में कुछ तुकान्त और तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है। जिससे काव्य सौंदर्य और बढ़ गया है।
प्रश्न अभ्यास - सबद
प्रश्न 8 - मनुष्य ईश्वर को कहां-कहां ढूंढता फिरता है?
उत्तर - मनुष्य ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, काबा, कैलाश, क्रिया - कर्म, पूजा-पाठ, और योग वैराग्य आदि स्थानों में ढूंढता फिरता है।
प्रश्न 9 - कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए किन प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है?
उत्तर - कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए पूजा - पाठ, कर्मकांड, दान - पुण्य आदि प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है।
प्रश्न 10 - कबीर ने ईश्वर को 'सब स्वाँसों की स्वाँस में' क्यों कहा है?
उत्तर - कबीर ईश्वर को अपने भीतर ही खोजने को कहते हैं। उनका मानना है की ईश्वर हमारे हृदय में ही हैं। उन्हें यहां - वहां ढूंढने से कुछ नहीं मिलेगा। ईश्वर तो प्रत्येक कण-कण में व्याप्त है।
प्रश्न 11 - कबीर ने ज्ञान के आगमन की तुलना सामान्य हवा से न कर आँधी से क्यों की?
उत्तर - ज्ञान रूपी आँधी वह ईश्वरी प्रकाश है जो अज्ञानता रूपी अंधकार को मिटाने में समर्थ है। इसलिए कभी ने ज्ञान के आगमन की तुलना समान हवा से ना करके आधी से की है।
प्रश्न 12 - ज्ञान की आँधी का भक्तों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर - ज्ञान की आँधी का भक्तों के जीवन पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है -
1 - मनुष्य भ्रम, मोह - माया के बंधन से मुक्त हो जाता है।
2 - हृदय से बुराइयां दूर हो जाती हैं और मन साफ हो जाता है।
3 - इच्छाएं खत्म हो जाती हैं और कुबुद्धि दूर भाग जाती है।
4 - जीवन में ज्ञान रूपी प्रकाश भर जाता है और अज्ञानता रूपी अंधकार मिट जाता है।
प्रश्न 13 - भाव स्पष्ट कीजिए -
क - हिति चित्त की द्वै थूँनी गिराँनी मोह बलिंडा तूटा।
उत्तर - कबीर कहते हैं ज्ञान की आंधी आने से हृदय की सारी इच्छाएं समाप्त हो जाती है और मोह रूपी दीवार भी टूट जाती है।
ख - आंधी पीछै जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भीनाँ।
उत्तर - जिस प्रकार जल की वर्षा होने से चारों और साफ हो जाता है। उसी तरह ज्ञानरूपी आंधी के आने से ज्ञान का प्रकाश चारों ओर फैल जाता है और अज्ञानता रूपी अंधकार खत्म हो जाता है।
रचना अभिव्यक्ति
प्रश्न 14 - संकलित साखियों और पदों के आधार पर कबीर के धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव संबंधी विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - साखियों और पदों के आधार पर कबीर ने ईश्वर के नाम पर पूजा-पाठ, दान, कर्मकांड, भेदभाव, द्वेष आदि पाखंडों का खंडन किया है। उन्होंने धार्मिक और सामाजिक रुप से ऊंच-नीच, भेदभाव से रहित समाज की कल्पना की है। कबीर सभी धर्मों में एक ही ईश्वर को मानते थे। जो संसार के प्रत्येक कण-कण में व्याप्त है।
भाषा अध्ययन
प्रश्न 15 - निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए -
तद्भव - तत्सम
पखा पाखी - पक्ष विपक्ष
अनत - अन्यत्र
जोक - योग
जोगति - युक्ति
वैराग - वैराग्य
निरपख - निष्पक्ष
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